देहरादून। डोईवाला क्षेत्र के गांवों में पिछले करीब 30 वर्षो से बंदोबस्त नहीं किया गया है।
जिस कारण भूमिधरों व किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
डोईवाला क्षेत्र में प्रक्रिया के तहत 1993 के लगभग भूमि बंदोबस्त किया गया था।
जिसमें भूमि बंदोबस्त करने वालों ने काफी जमीनों के नंबर इधर से उधर कर दिये थे।
सैकडों की संख्या में किसानों की जमीनों के नंबर गड़बड़ कर दिए गए।
जब किसानों व भूमिधरों को पता चला तो वो परेशान हो गए।
और यही कारण है कि सैकडों भूमि के मुकदमें कोर्ट में चल रहे हैं।
खासकर जौलीग्रांट, मारखमग्रांट आदि क्षेत्रों में भूमि बंदोबस्त के दौरान भारी गड़बड़ी हुई है।
इसलिए अब यूकेडी ने डोईवाला के इन क्षेत्रों में दोबारा बंदोबस्त की मांग की है।
यूकेडी ने कहा कि जमीन में कहीं के नंबर कहीं हैं और खाता संख्या कहीं और दर्ज होने से
काश्तकारों को और भूमि धरों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
भूमि की दाखिल खारिज अथवा खरीद बिक्री में भी रकबों का सही ढंग से मिलान न होने के कारण परेशानी से गुजरना पड़ रहा है।
जिस कारण उत्तराखंड क्रांति दल लंबे समय से डोईवाला में भूमि बंदोबस्त कराए जाने की मांग कर रहा है।
उत्तराखंड क्रांति दल के जिलाध्यक्ष संजय डोभाल ने कहा कि जौलीग्रांट, अठूरवाला,
भानियावाला आदि तमाम इलाकों में भूमि बंदोबस्त न होने के कारण लोगों को परेशानी हो रही है।
उत्तराखंड क्रांति दल के जिला उपाध्यक्ष अवतार सिंह बिष्ट ने कहा कि काश्तकारों के
बीच में इस समस्या को लेकर कई बार विवाद हो चुका है।
इसको लेकर उत्तराखंड क्रांति दल ने उप जिलाधिकारी के माध्यम से डीएम देहरादून को एक ज्ञापन भी सौंपा।
ज्ञापन देने वालों में केंद्रीय मीडिया प्रभारी शिव प्रसाद सेमवाल, जिला अध्यक्ष संजय डोभाल,
केंद्रीय सचिव केंद्र पाल सिंह तोपवाल, अवतार सिंह बिष्ट, नगर अध्यक्ष दिनेश कोठियाल,
राजकुमारी, कांता नवानी आदि शामिल रहे।
जौलीग्रांट में ग्रामीणों, एयरपोर्ट व वन विभाग में विवाद
डोईवाला। जौलीग्रांट में ग्रामीणों, एयरपोर्ट व वन विभाग में भूमि विवाद वर्षो से चल रहा है।
कोई अपनी भूमि एसडीआरएफ, कोई एयरपोर्ट में बताता है। वहीं वन विभाग के नंबरों को लेकर भी विवाद चल रहा है।
कुछ लोगों के भूमि के नंबर सड़क में दिखाए गए हैं।
नसबंदी के दौरान दिए भूमि पट्टों पर विवाद
डोईवाला। 90 के दशक के दौरान नसबंदी के कराने वाले लोगों व कुछ भूमिहीन लोगों को
पंचायत के पट्टे आवंटित किए गए थे। लेकिन उन लोगों को जो पट्टे ग्राम सभा की भूमि के काटे गए थे उस पर उस समय पेड़ खड़े थे।
जिस कारण वन विभाग की खाली पड़ी भूमि पर उन परिवारों को बसा दिया गया था।
तब ग्राम पंचायत व वन विभाग के बीच तय हुआ था कि नंबरों को ठीक कर दिया जाएगा।
लेकिन वो 1993 के बंदोबस्त में भी ठीक नही किए गए। जिस कारण अब ग्रामीणों,
एसडीआरएफ, वन विभाग व एयरपोर्ट के बीच विवाद चल रहा है। इसलिए भी अब बंदोबस्त की अधिक जरूरत है।
नंबर ठीक नहीं हुए तो नहीं मिलेगा मुआवजा
डोईवाला। बंदोबस्त नहीं होने से सबसे ज्यादा नुकसान भूमि अधिग्रहण के दौरान उन लोगो
को होगा। जिनके नंबर गड़बड़ हैं। क्योंकि एयरपोर्ट विस्तारीकरण व अन्य कारणों से जमीन अधिग्रहण की स्थिति में ऐसे लोग खाली हाथ रह जाएंगे।
भूमाफिया नही चाहता हो बंदोबस्त
डोईवाला। पिछले बंदोबस्त के दौरान हुई गड़बड़ी से सबसे ज्यादा फायदा भूमाफिया को हुआ है।
जिस भी जमीन के नंबरों या खातों में गड़बड़ी होती है। उस जमीन को भूमाफिया बाहर से बाहर ही बेच देते हैं।
या फिर जमीन के मालिक को बताते है कि तुम्हारे नाम जमीन नही है। और जिस जमीन पर तुम हो वो तुम्हारे नाम नही है।
जिसके बाद उससे ओने पौनो दामों पर जमीन खरीद लेते हैं। कई बार भूमाफिया बताते हैं कि आपकी जमीन उस जगह निकल रही है।
हमारे नाम रजिस्ट्री कर दो। कब्जा वो खुद छुड़वा लेंगे।
यही कारण है कि 1993 के बंदोबस्त की गड़बड़ी के बाद भूमाफिया अब तक करोडों के वारे न्यारे कर चुका है।
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