उत्तराखंड

अंकिता ध्यानी ने जीता सोना, महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी

देहरादून: उत्तराखंड की बेटी अंकिता ध्यानी ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में अपनी मेहनत और लगन से न केवल प्रदेश का नाम रोशन किया, बल्कि महिला खिलाड़ियों के लिए एक नई प्रेरणा भी बनीं। उनकी इस उपलब्धि ने राज्य के खेल इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है।

संघर्ष से सफलता तक का सफर

अंकिता ध्यानी, जो आज राष्ट्रीय खेल की स्वर्ण पदक विजेता हैं, उनकी इस जीत के पीछे सालों की कड़ी मेहनत, संघर्ष और अटूट संकल्प छिपा है। उत्तराखंड के एक छोटे से कस्बे से आने वाली अंकिता को हमेशा से दौड़ने का शौक था। लेकिन सीमित संसाधन और कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया।

राष्ट्रीय खेल में शानदार प्रदर्शन

38वें राष्ट्रीय खेल में अंकिता ने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पहले दिन 10,000 मीटर रेस में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए रजत पदक जीता। इसके बाद अपनी मुख्य स्पर्धा 3000 मीटर स्टीपल चेस में उन्होंने जबरदस्त ऊर्जा के साथ दौड़ लगाई और स्वर्ण पदक अपने नाम किया। राष्ट्रीय खेल के एथलेटिक्स स्पर्धा के अंतिम दिन 5,000 मीटर की दौड़ में उन्होंने महाराष्ट्र की धाविका को कड़ी टक्कर देते हुए दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया।

उनकी इस उपलब्धि के साथ ही उत्तराखंड की पदक तालिका में भी सुधार हुआ, और प्रदेश सातवें से छठे स्थान पर पहुंच गया।

मुख्यमंत्री ने दी बधाई, महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मीडिया से बातचीत में अंकिता की इस सफलता पर कहा, “अंकिता की जीत ने उत्तराखंड को गौरवान्वित किया है। राष्ट्रीय खेल में अंकिता का प्रदर्शन उत्तराखंड की कई महिलाओं के लिए मिसाल बनेगा।”
खेल जगत में नई ऊर्जा का संचार

अंकिता की इस उपलब्धि से न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे उत्तराखंड में खुशी की लहर दौड़ गई है। उनकी सफलता ने प्रदेश की युवा लड़कियों को यह संदेश दिया है कि अगर सच्ची लगन और मेहनत हो, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता।

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आज अंकिता ध्यानी केवल एक नाम नहीं, बल्कि उन तमाम लड़कियों के लिए उम्मीद की किरण बन चुकी हैं, जो खेल की दुनिया में अपना भविष्य देखती हैं। उनकी इस जीत ने साबित कर दिया कि मेहनत, संघर्ष और आत्मविश्वास से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

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