उत्तराखंडदेशदेहरादूनधर्म कर्मपर्यटनमनोरंजनराज्य

रहस्य और रोमांच की कई कहानियां समेटे हुए है डोईवाला की यह पहाड़ी

पुराने लोग आंछरियों की कहानी से जोड़कर देखते हैं इस पहाड़ी को

देहरादून। न्याय पंचायत थानो के अंतर्गत नाहीकला के पास स्थित क्षेत्र की सबसे ऊंची पहाड़ी गोरण टिब्बे के नाम से मशहूर है। इस पहाड़ी के बारे में पुराने लोग कई कहानियों का जिक्र करते हैं।

इस पहाड़ी के बारे में पुराने लोगों में चर्चा होती है कि यहां आंछरियों (परियों) का निवास है। इस पहाड़ी के पास ही एक रहस्यमयी गुफा भी है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में यहां ओखली और उसमें कुटा हुआ अनाज पाया जाता था।

जबकि इस पहाड़ी के दूर दूर तक घना जंगल है। करीब दो दशक पहले नाहीकला निवासी ललित प्रसाद तिवाडी ने इस सबसे ऊंची पहाड़ी पर ग्रामीणों के सहयोग से एक माता का मंदिर बनाया था। जो कुछ समय बाद वज्रपात से टूट गया।

करीब एक हफ्ते पहले थानो वन विभाग की टीम इस टिब्बे के पास फायर लाइन काटने गई तो वनकर्मियों को इस टिब्बे पर एक किले की आकृति दिखाई दे रही है। जिसे एक वनकर्मी ने अपने फोन में भी कैद किया। बताया जा रहा है कि वहां से लौटने के बाद उस वनकर्मी की तबीयत खराब हो गई।

गोरण टिब्बे पर बनी किले जैसी आकृति

मौसम का लगाते थे अंदाजा

देहरादून। दो दशक पहले तक क्षेत्र में कई बार सर्दियों में लगातार कई हफ्तों तक बारिश होती रहती थी। तब लोग सुबह उठकर इस पहाड़ी को देखकर मौसम का अंदाजा लगाते थे। पुराने लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ी पर बर्फ पड़ने के बाद मौसम खुल जाएगा।

इसलिए पड़ा इस पहाड़ी का नाम गोरण टिब्बा

देहरादून। क्षेत्र के पर्यावरण प्रेमी और शिक्षक जगदीश ग्रामीण कहते हैं कि उन्होंने अपने बड़ों से इस पहाड़ी के बारे में कई कहानियां सुनी हैं। दशकों पहले पहले इस पहाड़ी पर गोरण का नाम का एक भड़ (वीर) रहा करता था। जो गोरण की पहाड़ी पर स्थित गुफा से होता हुआ दूसरे स्थान तक जाता था। फिर इसी गुफा से वापस इस पहाड़ी पर वापस आ जाता था। इस टिब्बे के चारों तरफ बांज, बुरांस आदि का घना जंगल मौजूद है। जबकि टिब्बे के ऊपर कोई भी पेड़ पौधे नही हैं।

ये भी पढ़ें:  “वोकल फॉर लोकल, लोकल फॉर ग्लोबल” का उत्कृष्ट उदाहरण है ऊधम सिंह नगर : केन्द्रीय राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा

एक किले से भी जुड़ी है इस टिब्बे की कहानी

देहरादून। इस टिब्बे को एक मशहूर किले से भी जोड़कर देखा जाता है। निवर्तमान सभासद राजेश भट्ट बताते हैं कि उनका पैतृक गांव इसी पहाड़ी के पास था। उन्होंने अपने बड़ों से इस पहाड़ी के बारे में सुना है कि एक बड़े शहर में जब एक मशहूर किले का निर्माण कराया जा रहा था। तब इस पहाड़ी के कारण उस किले के निर्माण में कुछ तकनीकी पेंच फंस गया था। जिसका बाद में उपाय कर किले को बनाया गया।

दो दिन पहले जब वो और उनकी टीम इस पहाड़ी के पास फायर लाइन काटने गई तो वहां एक गुफा दिखाई दी। जबकि उनके एक वनकर्मी को पहाड़ी के ऊपर एक किले जैसी आकृति दिखी। जिसे उसने मोबाइल में कैद किया। यह पहाड़ी चारों तरफ से घने बांज, बुरांस के जंगलों से घिरी है। यहां ट्रैकिंग रूट बनाने के लिए जल्द ही प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। एनएल डोभाल रेंजर थानो रेंज।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!