देहरादून। प्रख्यात हिंदी साहित्यकार, प्रोफेसर (डॉ ) दिनेश चमोला 'शैलेश' को हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में उल्लेखनीय योगदान हेतु पं. रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) के कुलपति, प्रख्यात भाषाविद प्रो. के.एल. वर्मा द्वारा सम्मानित किया गया। प्रो. चमोला, साहित्य एवं भाषा अध्ययनशाला द्वारा आयोजित पीएच.डी मौखिकी एवं व्याख्यानमाला में 'साहित्य के सरोकार' विषय पर व्याख्यान देने रायपुर पधारे थे। प्रो. वर्मा ने सर्जनात्मक साहित्य, अनुवाद, राजभाषा तथा प्रयोजनमूलक हिंदी के क्षेत्र में प्रो. चमोला के राष्ट्रव्यापी योगदान पर उन्हें हार्दिक बधाई दी व कहा कि अपने महत्त्वपूर्ण साहित्यिक अवदान के लिए छत्तीसगढ़ की दो संस्थाओं द्वारा सम्मानित होना गौरव का विषय है । इस व्याख्यान में विभिन्न विभागों के आचार्य, सह-आचार्य, शोधार्थी एवं हिंदी प्रेमी सम्मिलित रहे। पिछले चालीस (40) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले साहित्यकार प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर पचास से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व सतहत्तर (77) मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं । ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्वर्गीय पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में सतहत्तर (77) से अधिक पुस्तकों में लेखन किया है । आपके व्यापक मौलिक साहित्य देश के अनेक विश्वविद्यालयों में पीएच-डी.तथा एम.फिल. स्तरीय कई शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अनेक विश्वविद्यालयों में वर्तमान में चल रहे हैं । आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, 'नन्हे प्रकाशदीप', ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त....,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट', 'गायें गीत ज्ञान विज्ञान के' 'मेरी 51 विज्ञान कविताएँ' तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश' आदि प्रमुख हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आपके साहित्य पर पीएच- डी.तथा एम.फिल. स्तरीय कई शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं तथा अनेक विश्वविद्यालयों में वर्तमान में चल रहे हैं । दूसरी ओर वैभव प्रकाशन, रायपुर के सभाकक्ष में भी प्रो. दिनेश चमोला 'शैलेश' के सम्मान में एक विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। डॉ. सजरमा ने प्रो. चमोला का परिचय देते हुए कहा कि वे 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका "विकल्प" का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन कर चुके हैं तथा आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं। प्रो. .चमोला ने 'वर्तमान साहित्य में युगबोध की संकल्पना' विषयक अपने सारगर्भित उद्बोधन में जहां समग्र साहित्य के उन्नयन एवं विकास की चर्चा की, वहीं डॉ. एस शर्मा के प्रयासों से छत्तीसगढ़ में हिंदी के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की भी सराहना की। कार्यक्रम के दौरान संकेत साहित्य समिति के प्रांतीय अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग' एवं छत्तीसगढ़ मित्र के संपादन प्रख्यात भाषाविद् डॉ. शर्मा ने प्रो.दिनेश चमोला को श्रीफल एवं शाल से सम्मानित किया तथा रोचक पुस्तकें भेंट भेंट किया । इस अवसर पर विशेष रूप से वरिष्ठ साहित्यकार राम पटवा , अंबर शुक्ल'अंबरेश', सुभाष चन्द्रा सहित राजधानी के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे ।