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हरेला पर करोड़ों फूंकने के बावजूद लगातार कम हो रही हरियाली

पौधे लगाने के बाद नहीं हो रही पेड़ों की मॉनिटरिंग

हरेला विशेष

Dehradun. हरेला पर्व पर लाखों पौधे रौपे जाते हैं। जिसमें करोड़ों रूपए का बजट ठिकाने लगाया जाता है। लेकिन इसके बावजूद पर्यावरण बेहतर होने के बजाय बिगड़ता जा रहा है।

बढते हुए तापमान और घटती बारिश से पर्यावरणविद् हैरान और किसान परेशान हैं। हालत ये है कि इस जुलाई में आधे से भी कम बरसात अब तक हुई है। जिस कारण दर्जनों किसानों ने धान की बुआई छोड़ दी है। जबकि जो किसान धान की बुआई कर चुके हैं। उनके खेतों पर सूखे के बादल मंडरा रहे हैं। डोईवाला क्षेत्र तीन वन रेंज और राजाजी पार्क से घिरा हुआ इलाका है। जहां हर वर्ष सरकारी स्तर, विभागीय और विभिन्न संस्थानों द्वारा हजारों पौधे रौपे जाते हैं।

लेकिन इसके बावजूद इसका कोई सकारात्मक असर पर्यावरण पर होता अभी तक नहीं दिखाई दिया है। जिसका सबसे बड़ा कारण ये है कि जिन पौधों को हरेला पर लगाया गया उनकी बड़े होने तक मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है। जंगलों में जानबूझकर या लापरवाही से लगने वाली आग में ऐसे हजारों पौधे जलकर राख हो जाते हैं। और फिर पौधे लगाने के लिए नया बजट स्वीकृत किया जाता है।

घटते और धधकते जंगलों के बावजूद किसी वन अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। यहां तक की पेड़ों की तश्करी और वन्य जीवों के शिकार पर भी वन अधिकारी अपने स्टॉफ को बचा लेते हैं।

जो नेता, अधिकारी या विभिन्न संस्थानों से जुड़े लोग हरेला पर पौधे लगाते हैं। वो पूर्व में लगाए गए पौधों के बारे में जानने का प्रयास ही नहीं करते कि वो पौधे बचे हैं। या मर गए हैं। क्योकि हरेला पर लगाए गए पौधे यदि बड़े होते तो पर्यावरण और जंगलों पर भी इसका असर दिखता। लेकिन जंगलों के अंदर पेड़ों से ज्यादा लालटेना की झाड़िया उगी हुई हैं।

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इसलिए पेड़ लगाने के साथ ही पूर्व में लगाए गए पौधों और पुराने पेड़ों का डाटा सार्वजनिक किया जाए जिससे पता चलेगा कि हरेला कहां तक सफल हुआ है। जिस तरह राजाजी पार्क क्षेत्र, लच्छीवाला, थानों और बड़कोट के वन्य जीव जंगलों से सटे इलाकों में भोजन और पानी की तलाश में घूम रहे हैं। उससे साफ पता चलता है कि वन्य जीवों के लिए जंगलों में कुछ बचा नहीं है। जिस कारण वन्यजीव आबादी का रूख करने लगे हैं।

तीन वन रेंजों में वनों का क्षेत्रफल

लच्छीवाला: सात हजार हैक्टयर, हरेला पर्व पर एक घंटे में दो हजार पौधे लगाने का लक्ष्य। रेंजर घनानंद उनियाल का कहना है कि वर्किंग प्लान में दस साल बाद पेड़ों की गिनती होती है। तभी पता चलेगा कि पेड़ घटे हैं या बढ़े हैं। यानि कुछ अधिकारियों के रिटायरमेंट के बाद उनके द्वारा लगाए गए पेड़ों की गिनती होगी।

बडकोट वन रेंज: हरेला पर 15 हजार पौधे रौपने का लक्ष्य, सात हजार, 146.2 हैक्टयर वन क्षेत्रफल, रेंजर डीएस रावत ने कहा कि उनकी रेंज में रौपे गए पौधों के जीवित बचने का प्रतिशत 78 प्रतिशत से अधिक है।

थानों वन रेंज: हरेला पर 25 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य, 11 हजार, 774 हैक्टयर वन क्षेत्र, रेंजर एनएल डोभाल ने कहा कि काटे जाने वाले एक पेड़ के बदले दस पेड़ लगाए जाते हैं। और रौपे गए पौधों के जीवित बचने का प्रतिशत उनके यहां 90 प्रतिशत से ऊपर है। तीनों वन रेंज के आंकड़े देखने से साफ है कि या तो लगाए गए अधिकांश पौधे जीवित नहीं बचते या फिर पुराने पेड़ों की संख्या लगातार घट रही है। जिससे लगातार पर्यावरण बिगड़ रहा है।

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इन्होंने कहा

लगाए गए पेड़ों की संख्या बताने से कई अधिक जरूरी है। पूर्व में लगाए गए पेड़ों की लगातार मॉनिटरिंग करना। और जंगलों व वन वन्य जीवों की लगातार गणना कर आंकड़ों को सार्वजनिक करना। जिससे सबको पता चला कि जंगल घट रहे हैं या बढ रहे हैं। डां0 एसके कुडियाल प्रवक्ता वनस्पति विज्ञान, एसडीएम कॉलेज डोईवाला।

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