उत्तराखंड में 63 साल के किसान सुरेश बहुगुणा ने उजाड़ पड़ी जमीनों पर लहलहा दी फसलें
रेलवे से सेवानिवृत्ति के बाद सुरेश बहुगुणा ने झीलवाला में बंजर खेतों को संवार दिया
Dehradun. डोईवाला के झीलवाला में रेलवे से रिटायर्ड होने के बाद किसान बने सुरेश बहुगुणा ने बंजर जमीन में लहलहाती फसलें उगाने में सफलता प्राप्त की है
रेलवे में नौकरी के दौरान सुरेश झीलवाला में अपनी करीब दस बीघा भूमि पर ध्यान नहीं दे पाए थे। जिस कारण वहां बड़ी-बड़ी झाड़ियां उग गई थीं। पास ही जंगल से जानवरों का आना-जाना लगा रहता था। दिसंबर 2018 में रिटायर्डमेंट के बाद जब वो अपने घर लौटे तो उन्होंने देखा कि गांव में कई लोग अपनी जमीनों को प्लाटिंग के लिए बेच रहे थे।

यहां काफी जमीन बिक गई थी। लोगों ने उन्हे भी खेत बेचने की सलाह दी। लेकिन उन्होंने खेत से पहले झाड़ियों का कटान कर पत्थरों को हटवाया। श्रमिकों और जेसीबी की मदद से इस भूमि को खेती के लायक बनाया।
और पानी के लिए एक ट्यूबवैल लगवाया। ट्यूबवैल के लिए बिजली के लिए लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर से लाइन खिंचवाई। पानी और बिजली पर लगभग साढ़े सात लाख रुपये खर्च हुए, जिसमें से विभाग से एक लाख रुपये का अनुदान दिया। जिसके बाद अब उनके खेतों में दलहन, तिलहन, गेहूं और सब्जियों की पैदावार हो रही है। जिससे जमीन बेचने वाले दूसरे लोग अब सोचने को मजबूर हैं कि उन्होंने जमीन क्यों बेची।
अब वो अपने खेत में ब्लैक राइस उगाने की सोच रहे हैं। जो नॉर्थ ईस्ट में उगाया जाता है, जो डायबिटीज के रोगियों के लिए अच्छा बताया जाता है। कहा कि दो दशक पहले तक डांडी, रानीपोखरी, झीलवाला गांवों में इतनी उड़द होती थी कि देहरादून से व्यापारी यहीं खेतों में पहुंच जाते थे। रानीपोखरी से सटे इस इलाके में उड़द और झिलंगा दालों का उत्पादन होता था। झिलंगा दाल, नौरंगी दालों की एक किस्म है।
बहुगुणा बताते हैं, बेरोजगारी की समस्या नहीं है। खेतों में काम करने के लिए लेबर नहीं मिल रही। 500 रुपये दिहाड़ी है, तब भी कोई काम नहीं करता। सरकार फ्री का राशन उपलब्ध करा रही है, इसलिए लोगों की श्रम करने में रूचि कम हो रही है। इसके बावजूद उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। और वर्तमान में उनके खेत में लहलहाती गेहूं की फसल खड़ी है।
साभार: राजेश पांडे।
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