एयरपोर्ट मुख्य गेट से नदी के रूप में अंदर घुसता बाढ का पानी।
Dehradun. शनिवार को देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर जाखन की सहायक नदी विदालना का पानी घुसने से बाढ आ गई। जिससे एयरपोर्ट पर हड़कंच मच गया।
इससे पहले एयरपोर्ट के रनवे पर गुलदार, भेडिया, गीदड़ और गजराज भी चहलकदमी कर चुके हैं। जिन्हे रेस्क्यू कर या तो पकड़ा गया। या भगाया गया है। अब देहरादून एयरपोर्ट के सामने एक नई मुसीबत बाढ की खड़ी हो गई है।
शनिवार को जिस तरह बाढ का पानी नदी के रूप में एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हुआ। उससे भविष्य में जान-माल का खतरा होने की संभावनाएं काफी बढ गई हैं। शनिवार की सुबह तड़के एयरपोर्ट में बाढ आ गई।
उजाला होने के कारण लोग पानी में आगे नहीं बढे। और बाढ के पानी से दूर ही रहे। लेकिन यदि भविष्य में कभी देर रात एयरपोर्ट पर बाढ का पानी घुस गया। तो हवाई पैसेंजरों के साथ वहां काम कर रहे कर्मचारियों और कोठारी मोहल्ले की तरफ से आवाजाही करने वाले लोगों को जान-माल का खतरा हो सकता है।
देहरादून एयरपोर्ट का 2007 में विस्तारीकरण किया गया था। जिसे अब इंटरनेशनल बनाने की कवायद चल रही है। लेकिन यह एयरपोर्ट राजाजी पार्क और थानों व बडकोट वन रेंज के जंगलों के बीच में है।
जिसके एक ओर जाखन नदी बरसात में उफनते हुए बहती है। ऐसे में यह जरूर देखना चाहिए कि इस स्थान पर एयरपोर्ट को और बड़ा किया जाना कहां तक उचित रहेगा। क्योंकि विदालना में आई बाढ के पानी को काफी हद तक घने जंगलों ने रोके रखा। लेकिन जब ये जंगल ही काट दिया जाएगा तब या तो एयरपोर्ट को बाढ से खतरा होगा।
या फिर पूरा जौलीग्रांट और अठुरवाला बाढ के मुहाने पर होगा। गांव के पुराने लोग बताते हैं कि जिस स्थान पर एयरपोर्ट है। वहां घना जंगल था। जिसमें जौलीग्रांट के हजारों पशु रोज चरने जाते थे। और उस स्थान पर काफी नाले और खाले थे। जिन्हे पाटकर एयरपोर्ट और एसडीआरएफ का मुख्यालय बना दिया गया है।
इसलिए यहां प्रकृति और पर्यावरण से छेड़छाड़ भविष्य में कोई बड़ी तबाही ला सकती है। एयरपोर्ट मौसम विभाग ने शनिवार सुबह साढे आठ बजे तक कुल 142.2 एमएम बारिश दर्ज की। जबकि उससे बाद भी और बारिश हुई।
सूर्यधार झील से नहीं छोड़ा गया पानी
देहरादून। विदालना और जाखन नदी में आई बाढ को कुछ लोग सूर्यधार झील से भी जोड़कर देख रहे थे। जिसे संबधित अधिकारियों ने सिरे से खारिज कर दिया है।
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता डीसी उनियाल ने कहा कि बरसात में झील के गेट खुले रहते हैं। और तेजी से पानी को नहीं छोड़ा जाता है। सौंग और जाखन में बादल फटने से बाढ आई है।
इन्होंने कहा
मॉनसून आकर पहाड़ों से टकराता है। और पीछे से और मॉनसून आ रहा होता है। जिससे पहाड़ों और मैदानी क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है। अंधाधुंध विकास की बजाय पर्यावरण के अनुकूल ही विकास किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने से भविष्य में बड़ी आपदाएं आ सकती हैं। डॉ डीसी नैनवाल, प्राचार्य एवं भूविज्ञान विशेषज्ञ एसडीएम कॉलेज डोईवाला।